सुमंत
अक्सर ये चर्चा सुनाई देती है की भारत शीघ्र ही दुनिया के प्रमुख शक्तिशाली एवं विकसित देशो की श्रेणी में पहुँचजाएगा। इसके जो विभिन्न कारण गिने जाते है, उनमे एक मुख्या कारण यह है कि भारत कि लगभग ५०% जनसंख्या युवा है और यही युवा पीढ़ी भारत के उज्जवल भविष्य का निर्माण करेगी।
समय के साथ-साथ जैसे सभी क्षेत्रो में परिवर्तन हुए है, उसी तरह शिक्षा के क्षेत्र में भी कई बदलाव हुए है।पारंपरिक विषयो के अलावा अनेक नए पाठ्यक्रम शुरू हुए हैं और आज भारतीय युवाओं के पास शिक्षा के विभिन्नविकल्प उपलब्ध हैं। इसका लाभ ये हुआ है कि हमारे देश के युवाओं ने अपनी रुचियों और क्षमताओं के अनुसारविषय का चुनाव किया और प्रत्येक क्षेत्र में भारत के युवा छा गए। चाहे चिकित्सा का क्षेत्र हो या साहित्य का, शिक्षाका क्षेत्र हो या व्यापार का, Computers का क्षेत्र हो या अंतरिक्ष अनुसंधान का; हर जगह, हर क्षेत्र में, हर देश में, भारतीय युवाओं ने अपनी छाप छोड़ी है। भारत के युवा जिस देश में गए, वहाँ उन्होंने उस देश कि उन्नति के लिएअपनी पूरी क्षमता का उपयोग मेहनत, इमानदारी और निष्ठा के से किया.इससे दुनिया में भारत का सम्माननिश्चित ही बढ़ा है।
यह तो नि:संदेह गर्व और प्रसन्नता का विषय है कि भारत के युवा जिस देश में भी गए हैं, वहा उन्होंने अपनापरचम लहराया है। लेकिन, इससे जुड़े कुछ और पहलू भी हैं, जिन पर ध्यान दिया जाना आवश्यक है। भारतीययुवाओं ने विशव के सभी देशों में जाकर सफलता प्राप्त की है और उन देशों के विकास में अमूल्य योगदान दिया है।लेकिन, आज भारत कि स्थिति क्या है? भूख, गरीबी, बेरोज़गारी, बीमारी, भ्रष्टाचार, आतंकवाद, जातिगत द्वेष, अपराध आदि जैसी न जाने कितनी चुनौतियों से अपना देश जूझ रहा है। हर दिन स्थिति बिगड़ती जा रही है। क्याइसे सुधारने के प्रति हमारा कोई कर्तव्य नहीं है?कभी जो आतंकवाद सिर्फ़ देश के सीमावर्ती राज्यों तक सीमितथा,आज वह पूरे देश में फ़ैल चुका है। जम्मू-काश्मीर से तमिलनाडु तक और राजस्थान से मणिपुर तक हर राज्यसे आतंकवादी घटनाओं कि खबरें मिलती रहती हैं। केरल से पश्चिम बंगाल तक सैकडो जिलों में नक्सलीगतिविधियाँ बढ़ रही हैं। पड़ोसी देशों से होने वाली घुसपैठ लगातार जारी है। दूसरी और हमारी सेना योग्य अफसरोंकी कमी से जूझ रही है। वायुसेना के अनेक Pilots ज्यादा वेतन और आरामदायक जीवन की चाह में निजी विमानकंपनियों का रूख कर रहे हैं। हमारे स्कूलों और महाविद्यालयों में पढ़ने वाले हजारों युवाओं के मन में USA,UK याऑस्ट्रेलिया जाने का सपना पल रहा है, लेकिन ऐसे कितने हैं, जो भारतीय सैन्य दल में जाना चाहते हैं?ऐसे कितनेहैं, जो विदेश में नौकरी के लुभावने प्रस्ताव को ठुकराकर अपना पूरा जीवन अपने देश की प्रगति के लिए समर्पितकरना चाहते हैं?
हमें गर्व होता है की अमरीका में बड़ी संख्या में भारतीय डॉक्टर कार्य करते हैं और उन्हें वहाँ बहुत सम्मान भीमिलता है। दूसरी और ये खबरें भी सुनाई देती हैं की आवश्यक स्वस्थ्य सुविधाओं और दवाओं के अभाव में ग्रामीणक्षेत्रों में रोज़ अनेक बच्चों और रोगियों की मृत्यु हो रही है। मेरे मन में प्रश्न उठता है की अमरीका में रह रहे जिनभारतीय डॉक्टर पर हमें गर्व होता है, यदि वे सुख सुविधाओं और धन की बजाय देश-सेवा को अधिक महत्व देते तोक्या हमें उन पर और अधिक गर्व नही हुआ होता? हम NASA में कार्य कर रहे भारतीयों की चर्चाएं भी अक्सरसुनते हैं। इसमें संदेह नही है की अंतरिक्ष अनुसंधान का महान कार्य सम्पूर्ण मानवता के लिए है। लेकिन, मानवताके हित का जो कार्य हमारे भारतीय युवा नासा में जाकर कर रहे हैं, वह भारत की अंतरिक्ष संस्था इसरो में भियो तोकिया जा सकता था!! आज अनेक युवा वैज्ञानिकों का ध्येय नासा में कार्य करने का है, लेकिन हमारे देश का हरयुवा डॉक्टर अवुल पकिर जैनुलाबदीन अब्दुल कलाम जैसा क्यों नही है, जिन्होंने किसी विदेशी संस्था के लिए कामकरने की बजाय देश में रहकर अनुसंधान करना ही ज्यादा पसंद किया? हम सभी आज नासा के Missions परकाम कर चुके भारतीय वैज्ञानिकों को जानते हैं, लेकिन हम में से कितने लोगों को भारत के एक मात्र अन्तरिक्षयात्री श्री राकेश शर्मा का नाम भी याद है?
मैं विदेशों में जाकर शिक्षा प्राप्त करने, धन कमाने या अनुभव हासिल करने का विरोधी नहीं हूँ। अच्छे से अच्छाऔर आधुनिक ज्ञान प्राप्त करना, अधिक से अधिक धन-सम्पन्नता और सुख-सुविधा की इच्छा करना, ये सभीप्रत्येक व्यक्ति की आवश्यकता भी है और अधिकार भी। इनकी प्राप्ति के लिए सभी तरह के उचित और नैतिक मार्गोंसे प्रयास भी करना चाहिय। लेकिन, अपनी आवश्यकताओं और अधिकारों की पूर्ति करते हुए हमें अपने देश कीआवश्यकताओं और इसके प्रति अपने कर्तव्यों को नहीं भूलना चाहिए। हम यह याद रखें की केवल TAX के रूप मेंकुछ रुपये सरकार को दे देने से हमारा कर्तव्य पूरा नहीं हो जाता। इस देश में जन्म लेकर, यहाँ के अन्न से पोषणपाकर, इस देश के संसाधनों का उपयोग करके, इस देश में शिक्षा प्राप्त करना और फ़िर इसे हमेशा के लिए छोड़करविधेसों में बस जाना ठीक नही है। यदि कोई देश से बाहर जाना ही चाहता है, तो कुछ वर्षों तकवहाँ रहकर उसे लौटआना चाहिए और वहाँ से प्राप्त ज्ञान,धन और अनुभव का उपयोग भारत की प्रगति के लिए करना चाहिए। यहाँ मैंयह भी स्पष्ट रूप से कहना चाहता हूँ की कुछ वर्षों में लौट आने का अर्थ यह नहीं है की हम पूरी क्रियाशील युवावस्थाविदेशों में बिताएं और जीवन के अन्तिम वर्षों में अपने बुढापे का बोझ भारत पर डाल दें।
हम में से अधिकांश लोग देश की वर्तमान चिंताजनक स्थिति और भीषण समस्याओं के लिए सरकार को दोष देतेहैं। यह सही है की स्वतन्त्रता के बाद भी हमारी सरकारों ने अंग्रेजों की बनाई हुई नीतियों को ही जारी रखा और उन्हेंबढावा भी दिया। लेकिन, हमें यह नहीं भूलना चाहिए की ग़लत नीतियां बनने के लिए यदि सरकार दोषी है, तो ऐसीसरकारों को चुनने वाले मतदाता के रूप में हम भी दोषी हैं, और जो मतदान करते ही नहीं, वो तो और भी अधिकदोषी हैं क्योकि मतदान केवल हमारा लोकतान्त्रिक अधिकार ही नही, बल्कि हमारा राष्ट्रीय कर्तव्य भी है। इसलिएहमें जागरूक रहकर देश-हित को सर्वोच्च प्राथमिकता देते हुए ही पाने मताधिकार का प्रयोग करना चाहिए।
मैं इस बात से सहमत हूँ की भरात की युवा पीढी ही देश के उज्जवल भविष्य का निर्माण करेगी। लेकिन, हमें यहयाद रखना होगा की भरात का पुनर्निर्माण इस देश को छोड़कर चले जाने से नही होगा। वह तभी हो सकता है,जबहम देश के प्रति अपने कर्तव्यों को समझे और इसकी प्रगति में अपना पूरा योगदान करें।
मुझे इस बात का पूरा अहसास है की देश-सेवा और कर्तव्य आदि बातो को पढ़कर कुछ लोग शायद मेरा उपहास भीकरेंगे, लेकिन मैं स्पष्ट कहना चाहता हूँ की मैंने ऐसे लोगो के लिए ये सब लिखने का कष्ट नहीं किया है। मैंने तो उनलोगों के लिए ये सब लिखा है, जिनके मन में आज भी अपना महान भारत समाया हुआ है। ऐसे सभी युवाओं सेमेरी यही अपील है की किसी भी प्रकार के भ्रम में न पड़ते हुए केवल अपनी अंतरात्मा की आवाज़ सुनें और अपनेदेश की प्रगति में पूरा योगदान करें।
आप सबकी प्रतिक्रियाओं का मुझे इंतज़ार रहेगा। सृजनात्मक (Creative) सुझावों और सकारात्मक (Positive) आलोचनाओं का मैं हमेशा खुले दिल से स्वागत करूँगा। आपने मेरे विचारों को पढने के लिए अपना समय दिया, इसके लिए मैं आपका आभारी हूँ।
भारत के युवा. . .
Youth Ki Awaaz, Sunday, June 7, 2009वरुण गाँधी पर एन एस ए; आतंकियों पर क्या?
Youth Ki Awaaz, Monday, April 6, 2009-सुमंत
पिछले कुछ दिनों से उत्तर प्रदेश के पीलीभीत से भा.ज.पा. के उम्मीदवार वरुण गाँधी के कुछ भाषणों को लेकर देश भर में विवाद जारी है | वरुण पर आरोप है की उन्होंने अपने भाषण में एक धर्म के लोगो को दूसरे संप्रदाय के विरुद्ध भड़काया है, जो कि देश की एकता के लिए घातक है| स्वाभाविक रूप से इस प्रकार के भाषण की चर्चा होते ही देश भर में हंगामा और विरोध प्रदर्शन शुरू हो गए| चूंकि, ये चुनाव का मौसम है, इसलिए कोई भी राजनैतिक दल इस मुद्दे से लाभ उठाने में पीछे नहीं रहना चाहता| वरुण गाँधी को तुंरत गिरफ्तार कर लिया गया और इस समय वे उत्तर प्रदेश की एटा जेल में बंद हैं| उन पर राष्ट्रीय सुरक्षा कानून लगा दिया गया है और चूंकि यह मामला अदालत में है, इसलिए मै इस पर कोई टिप्पणी नहीं करना उचित नहीं समझता| लेकिन एक मतदाता होने के नाते मुझे देश की वर्तमान राजनितिक स्थिति और राजनीति के गिरते स्तर को देखकर बहुत दुःख होता है और इस पर अपने विचार अन्य मतदाताओं, ख़ास तौर पर युवाओं, तक पहुंचाना मै आवश्यक समझता हूँ|
मै किसी व्यक्ति, पार्टी या विचार धारा का समर्थन या विरोध नहीं करूँगा| भारत विश्व का सबसे बड़ा लोक-तंत्र है और लोक-तंत्र की सबसे पहली और महत्वपूर्ण शर्त है, सहनशीलता और निष्पक्षता| हम स्वयं से पूछे कि क्या हम सहनशील और निष्पक्ष हैं? हम जिस प्रसन्नता के साथ अपनी समर्थक विचारधारा का स्वागत करते हैं, क्या उतनी ही प्रसन्नता के साथ विरोधी विचारो को भी स्वीकार कर पाते हैं? साथ ही हम स्वयं से यह भी सवाल करे कि क्या हम किसी विषय पर निष्पक्ष होकर विचार करते हैं, या हम अपने पूर्वाग्रहों(Prejudices) से ग्रस्त हैं? मुझे दुःख है कि भारतीय राजनीति और संपूर्ण समाज से ही यह दो महत्वपूर्ण तत्व धीरे धीरे समाप्त होते हुए दिखाई दे रहे हैं.और शायद यही देश कि वर्त्तमान स्थिति का एक बड़ा कारण भी है| ऐसे मे मेरे मन में यह प्रश्न उठता है कि हमारा भविष्य क्या है?राजनेताओ से अपेक्षा की जाती है कि वे समाज को सही दिशा दें, लेकिन यथार्थ में यही दिखाई देता है कि वे केवल अपने स्वार्थ के लिए समाज को बांटने में ही व्यस्त रहते हैं| जिन राजनितिक दलों से ये अपेक्षित है कि वे देश को अपराधो से सुरक्षित रखें, वे स्वयं ही अपराधो में लिप्त हैं| हमारी संसद और विधान सभाओं में ऐसे अनेक मंत्री और सांसद-विधायक हैं, जिन पर हत्या, लूटपाट, अपहरण और इसी तरह के न जाने कितने गंभीर आपराधिक प्रकरण दर्ज हैं| परन्तु चिंता का विषय यह है कि ऐसे लोग चुनावो में अपने धन-बल और बाहु-बल के कारण जीतकर विधायिका में पहुच रहे हैं| जब इनके हाथो में ही कानून बनाने और उसे परिवर्तित करने का अधिकार आ गया है, तो देश की कानून व्यवस्था मजबूत होने कि उम्मीद कैसे की जा सकती है? अधिक गंभीर तथ्य यह है कि देश की सेवा और रक्षा करने का दावा करने वाले इन राजनैतिक दलों में से कोई एक दल भी इन अपराधिक प्रवृत्ति के उम्मीदवारों का विरोध करने के आगे नहीं आया है| उल्टे कही कही तो ऐसी स्थिति दिखाई देती है कि जैसे इन दलों में अपराधियों को टिकट देने की होड़ मची हुई है| यहाँ तक कि कुछ उम्मीदवार तो ऐसे हैं, जो जेल से ही चुनाव लड़ते रहे हैं. एक मतदाता होने के नाते मुझे ऐसा लगता है कि इस पर रोक लगनी चाहिए| कोई ऐसा व्यक्ति, जिसे अदालत जमानत तक दिए जाने के योग्य न समझती हो, उसे एक पूरे क्षेत्र के लाखो नागरिको के भविष्य के निर्धारण का अधिकार कैसे दिया जा सकता है? जब तक ऐसा कानून नहीं बन जाता, तब तक इस बात का ध्यान रखने की पूरी जिम्मेदारी मतदाताओं की है, कि चाहे कुछ भी कारण हो, पर हम ऐसे उम्मीदवारों के समर्थन में वोट न दें|
मुझे दुःख है कि आज तक किसी सरकार ने इस विषय पर ध्यान देना आवश्यक नहीं समझा| कभी कभी तो लगता है कि अधिकतर सरकारों ने किसी भी महत्वपूर्ण विषय पर ध्यान देना आवश्यक नहीं समझा और सत्ताधीश केवल अपने स्वार्थो की पूर्ति के प्रयासों में ही व्यस्त रहे| परिणाम यह हुआ की आजादी के इतने वर्षो बाद भी हम भूख, गरीबी, अशिक्षा और बेरोज़गारी जैसी मूलभूत समस्यायों से ही जूझ रहे हैं| साथ ही अब देश की आतंरिक सुरक्षा पर भी लगातार खतरा बढ़ता हुआ दिखाई दे रहा है| लेकिन लगता है कि राजनितिक दलों के पास इन सब समस्यायों कि गंभीरता के बारे में सोचने का समय और इच्छा शक्ति है ही नहीं. उन्हें केवल अपने वोटो कि चिंता है| यही कारण है कि देश में लगातार आतंकवादी हमले हो रहे हैं, सेना और सुरक्षा बालो के जवान हर दिन देश की रक्षा के लिए अपना बलिदान दे रहे हैं, लेकिन फिर भी खतरा लगातार बढ़ ही रहा है| राजनेता हमें कानून और अदालत का सम्मान करने का पाठ पढाते हैं, लेकिन, अदालत ने जिन्हें दोषी करार देकर फासी की सजा सुनाई है, वे अपराधी आज भी जीवित हैं| पूर्व प्रधानमंत्री राजीव गाँधी के हत्यारों हो, या संसद पर हमले का दोषी, इनमे से किसी के भी मामले में अब तक अदालत के निर्णय का पालन नहीं हुआ है| ये सही है कि इन्हें राष्ट्रपति के पास दया याचिका दाखिल करने का अधिकार है, जिसका उन्होंने उपयौग किया है, लेकिन यह भी तो सच है कि इस विषय पर अंतिम फैसला गृह-मंत्रालय को लेना है और राष्ट्रपति को अपनी सिफारिश भेजनी है| तो ये आज तक क्यों नहीं हुआ? अधिकांश राजनैतिक दलों की सहानुभूति नागरिको के प्रति कम और अपराधियों के प्रति अधिक दिखाई देती है| उनके पास आतंकियों की मृत्यु पर शोक व्यक्त करने का समय है, लेकिन उन्हें किसी शहीद सैनिक के परिवार की चिंता नहीं है| इससे अधिक दुखद और दुर्भाग्यपूर्ण और क्या होगा, कि संसद पर हमले के दौरान मारे गए शहीदों के परिजनों ने उस हमले के दोषी आतंकवादी को फासी न दिए जाने के विरोध में अपने सभी पदक(medal) सरकार को लौटा दिए, लेकिन इसका भी कोई असर नहीं हुआ. हमारे नेताओ के मन में बांग्लादेशी घुसपैठियों के प्रति सहानुभूति है, लेकिन कश्मीर से निकाले जाकर पिछले २० वर्षो से अपने ही देश में शरणार्थी बनकर रहने को मजबूर हजारो नागरिको की चिंता करने का समय नहीं है| नेताओ के पास दिल्ली के बाटला हाउस में हुई मुठभेड़ पर प्रश्न उठाने का समय है, लेकिन उसमे मारे गए पुलिस अधिकारी की मृत्यु के प्रति शोक व्यक्त करने का समय नहीं है. ऐसे अनेक मुद्दे हैं, जिनके सम्बन्ध में हमारे राजनैतिक दलों का आचरण संदेहास्पद रहा है| अधिक दुःख इस बात का है कि मीडिया, जिसे लोक-तंत्र का चौथा स्तम्भ कहा जाता है, भी निष्पक्ष नहीं दिखाई देता. अधिकांश समाचार चैनल देश की समस्यायों और चुनौतियों के प्रति नागरिको को जागृत करने से अधिक महत्व अन्य गतिविधियों को देते हुए ही दिखाई देते हैं| जबकि, जागृत एवं निष्पक्ष मीडिया समाज को सही दिशा देने में एक महत्वपूर्ण भूमिका निभा सकता है|
इस स्थिति को सुधारने के लिए जरुरी है कि देश के नागरिक स्वयं जागृत हों और अपने कर्तव्यों का पालन करे| हम अपने स्वार्थ से ऊपर उठकर देश को महत्व देना सीखे| चुनाव में मतदान का अधिकार हमारा सबसे बड़ा अस्त्र है और मतदान केवल हमारा अधिकार ही नहीं, बल्कि यह राष्ट्रीय कर्तव्य भी है| अतः ये महत्वपूर्ण है कि हम मतदान अवश्य करे और इससे अधिक महत्वपूर्ण यह है कि अपना वोट केवल योग्य उम्मीदवार को दे| इस बात से कोई फर्क नहीं पड़ता कि हम किस राजनैतिक दल या विचारधारा के समर्थक हैं| हम चाहे जिसे चुने, पर हमारा लक्ष्य देश की सुरक्षा और विकास ही होना चाहिए. इस कार्य में युवाओं कि विशेष भूमिका है| युवा पीढी ही देश का भविष्य है. अतः आवश्यक है कि युवा अपनी ऊर्जा को सकारात्मक गतिविधियों में लगाये| हमें याद रखना चाहिए कि यदि हम आज अपनी ऊर्जा का दुरुपयोग करते रहे और देश की समस्यायों से मुह मोड़ कर बचने कि कोशिश करते रहे, तो इसका परिणाम भी हमें ही भुगतना होगा. अतः जरुरी ये है कि युवा पीढी जागृत होकर चुनावो में अपने मताधिकार का प्रयोग करे और अधिक से अधिक लोगो को मतदान के लिए प्रेरित करे| देश की सभी चुनौतियाँ और सभी समस्याए हम सभी की है और हम सब साथ मिलकर ही इन्हें कुचल सकते हैं| यह भी धयन रखना होगा की एक सक्षम और इमानदार सरकार ही इन समस्यायों का अंत कर सकती है| अतः आवश्यक है कि हम सब मिलकर मतदान के अपने कर्त्तव्य का पालन करे, ताकि विश्व का सबसे बड़ा लोक-तंत्र, भारत, विश्व का सबसे सफल, सुरक्षित और विकसित लोक-तंत्र भी बन सके|
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Youth Ki Awaaz, Tuesday, March 31, 2009-सुमंत
आजकल अक्सर GLOBAL WARMING (वैश्विक तापमान-वृद्धि) नामक शब्द की चर्चा सुनाई देती है। पृथ्वी पर बढ़ती जनसँख्या, वृक्षों की अंधाधुंध कटाई, अनियंत्रित औद्योगिकीकरण तथा असीमित प्रदुषण आदि के कारण वायुमंडल के तापमान में लगातार वृद्धि हो रही है। इससे ध्रुवीय क्षेत्रों की बर्फ तेज़ी से पिघलती जा रही है, जिसके कारण महासागरों का जल-स्तर बढ़ता जा रहा है और तटीय इलाकों के डूब जाने का खतरा उत्पन्न हो गया है। संयुक्त राष्ट्र संघ की एक ताज़ा रिपोर्ट के अनुसार समुद्री तटों पर बसे विश्व के १९ प्रमुख शहरों में से १६ शहर इस खतरे की चपेट में हैं। दूसरी ओर, वातावरण में तापमान बढ़ने के कारण मौसम-चक्र भी असंतुलित होता जा रहा है। इन सब परिवर्तनों के कारण निकट भविष्य में होने वाले दुष्प्रभावों तथा अंततः संपूर्ण पृथ्वी के विनाश की आशंका के कारण समस्त विश्व के प्रकृति-प्रेमी, पर्यावरणविद तथा वैज्ञानिक अत्यधिक चिंतित हैं। इस सभी की यह चेतावनी है की यदि पृथ्वी पर जीवन को बचाए रखना है, तो वैश्विक तापमान-वृद्धि को कम करने के लिए तुंरत बड़े पैमाने पर उपाय करना तथा प्रकृति के साथ खिलवाड़ बंद करना अति-आवश्यक है; अन्यथा हमारा अंत निश्चित है। इस चेतावनी का अर्थ स्पष्ट है-"प्रकृति बचेगी-विश्व बचेगा !!"
'प्रकृति' वस्तुतः पाँच प्रमुख तत्वों -पृथ्वी(मृदा), अग्नि, वायु, जल तथा आकाश- का समन्वय है। इन पञ्च तत्वों के मिश्रण से ही संपूर्ण सृष्टि का निर्माण हुआ है। सृष्टि के कण-कण में, प्रत्येक निर्जीव तथा सजीव में, सर्वत्र ये पाँच तत्व विद्यमान हैं। हमारे ग्रह पर जीवन की उत्पत्ति, अस्तित्व तथा विकास इन पाँच तत्वों के उचित संतुलन के कारण ही सम्भव हो सका है। सृष्टि की संपूर्ण विविधता भी इन तत्वों के विभिन्न संयोगों के कारण ही बनती हैं। अतः पृथ्वी पर जीवन को सुरक्षित रखने के लिए इन तत्वों के बीच उचित संतुलन को बिगड़ने न देना अत्यन्त महत्वपूर्ण है।
जिस प्रकृति ने हमें जन्म दिया है, उसने हमारी आवश्यकताओं की पूर्ण करने की समुचित व्यवस्था भी की है। पृथ्वी पर उपस्थित समस्त जीव-जंतु, पशु-पक्षी, पेड़-पौधे इत्यादि सभी अपनी समस्त आवश्यकताओं के लिए प्रकृति पर ही आश्रित हैं। इसी प्रकार प्रकृति, मनुष्य की भी सभी आवश्यकताओं को पूरा करने में सक्षम है। यदि ऐसा न होता, तो पृथ्वी से मनुष्य का अस्तित्व बहुत पहले ही मिट चुका होता। प्रकृति से ही हमें पोषण तथा संरक्षण मिल रहा है। लेकिन, दुःख और चिंता का विषय है कि मनुष्य स्वयं ही अपनी गलतियों के कारण प्रकृति से प्राप्त हो रहे इस संरक्षण को समाप्त करता जा रहा है। फलस्वरूप, न केवल मनुष्य-जाति पर, बल्कि समस्त विश्व के अस्तित्व पर ही संकट के बादल मंडराने लगे हैं। अपनी असीमित आकाँक्षाओं, स्वार्थ तथा लालच के कारण हम लगातार प्रकृति को हानि पहुँचा रहे हैं, जिससे प्राकृतिक संतुलन बहुत तेज़ी से बिगड़ रहा है। प्राकृतिक संसाधनों जैसे खनिज-पदार्थ, पेट्रोल, कोयला इत्यादि के बल पर हमने भौतिक-प्रगति की तथा सुख-सुविधा के साधन जुटाए। लेकिन, उसके साथ ही हमारा लालच भी चरम पर पहुँच गया है। इसके कारण प्रकृति का अधिक से अधिक शोषण करने की मानों होड़-सी लग गई है। हम यह भूल गए हैं की प्रकृति हमारी आवश्यकताओं की पूर्ति तो कर सकती है, लेकिन हमारी असीमित इच्छाओं की नहीं। परिणामस्वरूप, अपनी गलतियों के कारण हमने सम्पूर्ण विश्व का अस्तित्व ही संकट में डाल दिया है।
प्राकृतिक संसाधनों का अधिकतम उपयोग करने तथा इसके द्वारा अधिक से अधिक सुख-समृद्धि पाने की लालसा से अनेक यंत्रों, वाहनों, तकनीकों तथा उद्योगों का आविष्कार एवं विकास हुआ। इनके आधार पर प्रकृति का अधिक से अधिक शोषण करके अधिक से अधिक लाभ पाने के प्रयास भी प्रारम्भ हुए। सुख-समृद्धि बढ़ने के साथ-साथ हमारी जीवन-शैली भी तेज़ी से बदली और साथ ही प्राकृतिक संतुलन भी तेज़ी से बिगाड़ने लगा। फलस्वरूप, पृथ्वी, अग्नि, वायु, जल तथा आकाश में से कोई भी तत्व अब शुद्ध एवं सुरक्षित नहीं है। जनसँख्या-वृद्धि के कारण पेड़ों की अंधाधुंध कटाई की जाने लगी। बड़े-बड़े उद्योग-धंधे, कल-कारखाने आदि को चलाने के लिए कोयला, पेट्रो-पदार्थ तथा अन्य खनिजों की आवश्यकता होती है। इसकी पूर्ति के लिए भू-गर्भ की लगातार खुदाई हो रही है। अधिक से अधिक उत्पादन करने के लिए बड़े-बड़े यंत्रों का निर्माण किया गया है, जो प्रदूषण को बढ़ाने का कार्य कर रहे हैं। कल-कारखानों तथा वाहनों का धुंआ वायु-मंडल को प्रदूषित कर रहा है। इससे न केवल विषैली गैसों का अनुपात बढ़ रहा है, बल्कि कहीं-कहीं तो वायुमंडल की ओजोन -परत (Ozone Layer) में भी छिद्र उत्पन्न हो गए हैं। इसके कारण अनेक प्रकार की घातक बीमारियाँ उत्पन्न हो रही हैं। हमारे दैनिक जीवन के हर क्षेत्र में प्लास्टिक जैसे हानिकारक पदार्थ का प्रयोग बढ़ता जा रहा है। प्रयोग के बाद इसे नष्ट करना अत्यन्त कठिन है। यदि नष्ट करने के लिए इसे जलाया जाए, तो इससे विभिन्न हानिकारक गैसें उत्पन्न होती हैं, जो वातावरण के प्रदूषण को बहुत अधिक बढाती हैं तथा साथ ही हमारे स्वास्थ्य के लिए भी संकट उत्पन्न करती हैं। यदि इसे न जलाया जाए तो इसका अस्तित्व वर्षों तक बना रहता है, क्योकि अन्य पदार्थों के विपरीत प्लास्टिक समय के साथ गलता या नष्ट नहीं होता। खेतों में रासायनिक खाद के प्रयोग से कुछ समय तक उपज तो बढ़ जाती है, लेकिन, बाद में धीरे-धीरे धरती बंजर होने लगती है। साथ ही, ये रासायनिक खाद तथा फसल को बचाने के लिए छिडके जाने वाले कीटनाशक पदार्थ, दोनों ही अनाज के साथ मिल जाने के कारण हमारे स्वास्थ्य के लिए संकट भी उत्पन्न करते हैं। पश्चिम के कुछ देशों ने अब इस संकट को भली-भांति पहचान लिया है, अतः आज-कल वहाँ रासायनिक खाद के प्रयोग द्वारा उत्पन्न अन्न की बजाय जैविक खाद के प्रयोग से उत्पन्न अन्न को अधिक प्रयोग किया जाने लगा है।
जल हमारे जीवन की सर्वाधिक महत्वपूर्ण आवश्यकताओं में से एक है। लेकिन, हमने इसे भी अशुद्ध कर दिया है। नालियों, कल-कारखानों तथा अन्य स्त्रोतों से निकलने वाला गन्दा पानी अक्सर सीधे ही नदियों तथा अन्य जल-स्त्रोतों में बहा दिया जाता है। इसके कारण जल-प्रदूषण तेज़ी से बढ़ रहा है। नल-कूपों (Borewells) के बढ़ते प्रयोग के कारण भू-गर्भ में जल-स्तर लगातार नीचे जा रहा है। इससे जगह-जगह प्राकृतिक जल-स्त्रोत (कुएं, तालाब, छोटी नदियाँ इत्यादि) सूखने लगे हैं। यहाँ तक की अन्तरिक्ष भी प्रदूषण से मुक्त नहीं है। हमने अनेक मानव-निर्मित उपग्रह अन्तरिक्ष में प्रक्षेपित किए हैं। समय के साथ-साथ इनकी कार्यअवधि समाप्त हो जाने पर उए उपग्रह तथा अन्य यंत्र अन्तरिक्ष में ही घूमते रहते हैं। इस प्रकार हम आकाश को भी प्रदूषित कर रहे हैं। कुछ माह पूर्व ही अपने एक उपग्रह को नष्ट करने के लिए अमरीका ने अन्तरिक्ष में परमाणु-हथियारों का भी प्रयोग किया था। इस प्रकार अपनी ग़लत नीतियों एवं अमर्यादित आचरण के कारण हमने समस्त प्राकृतिक संतुलन को स्वयं ही बिगाड़ दिया है, तथा अब इसके दुष्परिणाम भी भुगत रहे हैं।
हमारी गलतियों के कारण प्रकृति का संतुलन बिगड़ रहा है, अतः इसे बचाने का कर्तव्य भी हमारा ही है। यहाँ महत्वपूर्ण प्रश्न यह नही है किइस बढ़ते प्राकृतिक असंतुलन के लिए दोषी कौन है? इस पर तो बाद में भी विचार किया जा सकता है। सत्य यह भी है कि किसी-न-किसी रूप में कम-अधिक मात्रा में प्रत्येक मनुष्य इसके लिए दोषी है। इस समय तो महत्वपूर्ण प्रश्न यही है कि प्रकृति को किस प्रकार बचाया जाए ताकि सम्पूर्ण विश्व कि रक्षा हो सके। इसके लिए आवश्यक उपायों को दो श्रेणियों में रखा जा सकता है-व्यक्तिगत तथा सार्वजनिक। व्यक्तिगत श्रेणी में ऐसे उपाय शामिल हैं जिनका पालन प्रत्येक व्यक्ति सरलता से कर सकता है। सार्वजनिक उपाय वे हैं, जिन्हें क्रियान्वित करने के लिए विभिन्न सामाजिक संगठनों तथा शासन-तंत्र की भागीदारी आवश्यक है।
निम्नलिखित सामान्य सुझाव प्रत्येक व्यक्ति सरलता से अपना सकता है :-
१ सबसे पहले प्रत्येक मनुष्य को यह समझना चाहिए की प्रकृति की रक्षा करना हमारा कर्तव्य है, न की इसका शोषण हमारा अधिकार है। अपनी आवश्यकताओं की पूर्ति के लिए प्राकृतिक-संसाधनों का दोहन तो हम करें, लेकिन प्रकृति के अंधाधुंध शोषण को रोकना होगा।
२ दैनिक जीवन में हम स्वच्छता का अधिक से अधिक ध्यान रखें। कूड़ा-करकट तथा अन्य पदार्थ यहाँ-वहाँ फैलाकर वातावरण को प्रदूषित न करें।
३ हम अपने व्यक्तिगत तथा सार्वजनिक जल-स्त्रोतों को शुद्ध रखें। कुएं, तालाब, नदियाँ इत्यादि में स्नान करते समय साबुन, शैंपू तथा अन्य रासायनिक तत्वों के प्रयोग से बचें, ताकि ये जल-स्त्रोत अशुद्ध न हों।
४ प्लास्टिक तथा पौलीथीन के प्रयोग को कम से कम करें। इनके स्थान पर कपड़े के सुंदर थैलों तथा कागज़ के आकर्षक लिफाफों का प्रयोग किया जा सकता है।
५ जहाँ तक सम्भव हो, वातानुकूलन-यंत्रों (Air-Conditioners) तथा रेफ्रीजरेटरों का प्रयोग कम से कम करना चाहिए, क्योकिं इनसे भी वातावरण के तापमान में वृद्धि होती है।
६ निजी वाहनों के स्थान पर सार्वजनिक परिवहन प्रणाली, रेल इत्यादि का प्रयोग अधिक करना चाहिए, ताकि इंधन की खपत और प्रदूषण दोनों में कमी आए। इसी तरह जहाँ सम्भव हो, वहाँ साइकिल का भी उपयोग किया जाना चाहिए।
७ हम अपने जीवन में शाकाहार को अपनाएं तथा दूसरों को भी इसके लिए प्रेरित करें। मांसाहार के लिए बड़े पैमाने पर पशु-पक्षियों की हत्या की जाती है, जिससे पारिस्थितिकीय असंतुलन (Ecological Imbalance) बढ़ता है।
८ वायु-प्रदूषण को कम करने में पेड़ महत्वपूर्ण भूमिका निभाते हैं। अतः हमें अपने आस-पास का वातावरण प्रदूषण-मुक्त तथा हरा-भरा रखने के लिए अधिक से अधिक पेड़ लगाने चाहिए और उनकी रक्षा करनी चाहिए। यदि जगह की कमी हो, तो कम से कम गमलों में छोटे-छोटे पौधे तो अवश्य ही लगाने चाहिए।
९ कृषि कार्यों में यंत्रों की बजाय पशु-धन का अधिक प्रयोग करें। छोटे-छोटे खेत जोतने के लिए ट्रैक्टर के स्थान पर बैलों का प्रयोग करना चाहिए।
१० खेतों में रासायनिक खाद तथा कीटनाशकों की बजाय केंचुआ खाद, गोबर, गोमूत्र इत्यादि प्राकृतिक एवं जैविक साधनों का प्रयोग किया जाना चाहिए।
ये कुछ ऐसे उपाय हैं, जिन्हें कोई भी व्यक्ति अपने दैनिक जीवन में सरलता से अपनाकर प्रकृति की रक्षा में अपना योगदान दे सकता है।
इनके अलावा कुछ ऐसे उपाय हैं, जिन्हें क्रियान्वित करने के लिए शासन-तंत्र तथा अन्य सामजिक संगठनों की सक्रिय भागीदारी आवश्यक है। जैसे :-
१ विद्युत्-उत्पादन के लिए पवन-ऊर्जा तथा सौर-ऊर्जा के उपयोग को बढावा देना।
२ सार्वजनिक परिवहन प्रणाली को अधिक सक्षम, सुविधाजनक और सस्ता बनाना।
३ वृक्षारोपण, जल-संवर्धन इत्यादि से जुड़े कार्यक्रम आयोजित करने तथा उनमें सक्रिय सहभाग लेने के लिए सभी की प्रोत्साहित करना।
४ योग, आयुर्वेद तथा अन्य प्राकृतिक चिकित्सा पद्धतियों को बढावा देना।
५ असीमित औद्योगिकीकरण की बजाय प्रकृति-आधारित विकास की अवधारणा पर विचार करके, उसे लागू करने का प्रयास।
ये कुछ ऐसे उपाय हैं, जिन पर सम्पूर्ण विश्व के शासकों तथा सामजिक संगठनों को विचार करना चाहिए।
पृथ्वी हमारे सौर-मंडल का सबसे सुंदर ग्रह है। प्रकृति की अनुपम विविधताएं इसकी सुन्दरता को और बढाती हैं। लेकिन, यह सुन्दरता निर्जीव नहीं है। पृथ्वी पर जीवन का अस्तित्व ही इस सुंदर ग्रह को सजीव बनाता है। सर्वाधिक बुद्धिमान तथा शक्तिशाली प्रजाति होने के कारण इस पृथ्वी की रक्षा का कर्तव्य मनुष्य का ही है। हम अपने विचार एवं व्यवहार से अपने इस घर की सुन्दरता को बढ़ा भी सकते हैं और नष्ट भी कर सकते हैं। निर्णय हमें स्वयं करना है। आवश्यकता इस बात को है की हम सब मिलकर पृथ्वी को पुनः हरा-भरा और सुंदर बनाने तथा प्रकृति की रक्षा करने का संकल्प लें, ताकि सम्पूर्ण विश्व की रक्षा हो सके। प्रकृति अर्थात पृथ्वी, अग्नि, वायु, जल तथा आकाश के बिना हमारा अस्तित्व सम्भव नहीं है। अतः प्रकृति को बचाना हमारा कर्तव्य है, क्योंकि, 'प्रकृति बचेगी-विश्व बचेगा !!'