सबसे मुश्किल कार्य देश को बदलना नहीं, खुद में बदलाव लाना है|

वरुण गाँधी पर एन एस ए; आतंकियों पर क्या?

-सुमंत

पिछले कुछ दिनों से उत्तर प्रदेश के पीलीभीत से भा.ज.पा. के उम्मीदवार वरुण गाँधी के कुछ भाषणों को लेकर देश भर में विवाद जारी है | वरुण पर आरोप है की उन्होंने अपने भाषण में एक धर्म के लोगो को दूसरे संप्रदाय के विरुद्ध भड़काया है, जो कि देश की एकता के लिए घातक है| स्वाभाविक रूप से इस प्रकार के भाषण की चर्चा होते ही देश भर में हंगामा और विरोध प्रदर्शन शुरू हो गए| चूंकि, ये चुनाव का मौसम है, इसलिए कोई भी राजनैतिक दल इस मुद्दे से लाभ उठाने में पीछे नहीं रहना चाहता| वरुण गाँधी को तुंरत गिरफ्तार कर लिया गया और इस समय वे उत्तर प्रदेश की एटा जेल में बंद हैं| उन पर राष्ट्रीय सुरक्षा कानून लगा दिया गया है और चूंकि यह मामला अदालत में है, इसलिए मै इस पर कोई टिप्पणी नहीं करना उचित नहीं समझता| लेकिन एक मतदाता होने के नाते मुझे देश की वर्तमान राजनितिक स्थिति और राजनीति के गिरते स्तर को देखकर बहुत दुःख होता है और इस पर अपने विचार अन्य मतदाताओं, ख़ास तौर पर युवाओं, तक पहुंचाना मै आवश्यक समझता हूँ|

मै किसी व्यक्ति, पार्टी या विचार धारा का समर्थन या विरोध नहीं करूँगा| भारत विश्व का सबसे बड़ा लोक-तंत्र है और लोक-तंत्र की सबसे पहली और महत्वपूर्ण शर्त है, सहनशीलता और निष्पक्षता| हम स्वयं से पूछे कि क्या हम सहनशील और निष्पक्ष हैं? हम जिस प्रसन्नता के साथ अपनी समर्थक विचारधारा का स्वागत करते हैं, क्या उतनी ही प्रसन्नता के साथ विरोधी विचारो को भी स्वीकार कर पाते हैं? साथ ही हम स्वयं से यह भी सवाल करे कि क्या हम किसी विषय पर निष्पक्ष होकर विचार करते हैं, या हम अपने पूर्वाग्रहों(Prejudices) से ग्रस्त हैं? मुझे दुःख है कि भारतीय राजनीति और संपूर्ण समाज से ही यह दो महत्वपूर्ण तत्व धीरे धीरे समाप्त होते हुए दिखाई दे रहे हैं.और शायद यही देश कि वर्त्तमान स्थिति का एक बड़ा कारण भी है| ऐसे मे मेरे मन में यह प्रश्न उठता है कि हमारा भविष्य क्या है?राजनेताओ से अपेक्षा की जाती है कि वे समाज को सही दिशा दें, लेकिन यथार्थ में यही दिखाई देता है कि वे केवल अपने स्वार्थ के लिए समाज को बांटने में ही व्यस्त रहते हैं| जिन राजनितिक दलों से ये अपेक्षित है कि वे देश को अपराधो से सुरक्षित रखें, वे स्वयं ही अपराधो में लिप्त हैं| हमारी संसद और विधान सभाओं में ऐसे अनेक मंत्री और सांसद-विधायक हैं, जिन पर हत्या, लूटपाट, अपहरण और इसी तरह के न जाने कितने गंभीर आपराधिक प्रकरण दर्ज हैं| परन्तु चिंता का विषय यह है कि ऐसे लोग चुनावो में अपने धन-बल और बाहु-बल के कारण जीतकर विधायिका में पहुच रहे हैं| जब इनके हाथो में ही कानून बनाने और उसे परिवर्तित करने का अधिकार आ गया है, तो देश की कानून व्यवस्था मजबूत होने कि उम्मीद कैसे की जा सकती है? अधिक गंभीर तथ्य यह है कि देश की सेवा और रक्षा करने का दावा करने वाले इन राजनैतिक दलों में से कोई एक दल भी इन अपराधिक प्रवृत्ति के उम्मीदवारों का विरोध करने के आगे नहीं आया है| उल्टे कही कही तो ऐसी स्थिति दिखाई देती है कि जैसे इन दलों में अपराधियों को टिकट देने की होड़ मची हुई है| यहाँ तक कि कुछ उम्मीदवार तो ऐसे हैं, जो जेल से ही चुनाव लड़ते रहे हैं. एक मतदाता होने के नाते मुझे ऐसा लगता है कि इस पर रोक लगनी चाहिए| कोई ऐसा व्यक्ति, जिसे अदालत जमानत तक दिए जाने के योग्य न समझती हो, उसे एक पूरे क्षेत्र के लाखो नागरिको के भविष्य के निर्धारण का अधिकार कैसे दिया जा सकता है? जब तक ऐसा कानून नहीं बन जाता, तब तक इस बात का ध्यान रखने की पूरी जिम्मेदारी मतदाताओं की है, कि चाहे कुछ भी कारण हो, पर हम ऐसे उम्मीदवारों के समर्थन में वोट न दें|

मुझे दुःख है कि आज तक किसी सरकार ने इस विषय पर ध्यान देना आवश्यक नहीं समझा| कभी कभी तो लगता है कि अधिकतर सरकारों ने किसी भी महत्वपूर्ण विषय पर ध्यान देना आवश्यक नहीं समझा और सत्ताधीश केवल अपने स्वार्थो की पूर्ति के प्रयासों में ही व्यस्त रहे| परिणाम यह हुआ की आजादी के इतने वर्षो बाद भी हम भूख, गरीबी, अशिक्षा और बेरोज़गारी जैसी मूलभूत समस्यायों से ही जूझ रहे हैं| साथ ही अब देश की आतंरिक सुरक्षा पर भी लगातार खतरा बढ़ता हुआ दिखाई दे रहा है| लेकिन लगता है कि राजनितिक दलों के पास इन सब समस्यायों कि गंभीरता के बारे में सोचने का समय और इच्छा शक्ति है ही नहीं. उन्हें केवल अपने वोटो कि चिंता है| यही कारण है कि देश में लगातार आतंकवादी हमले हो रहे हैं, सेना और सुरक्षा बालो के जवान हर दिन देश की रक्षा के लिए अपना बलिदान दे रहे हैं, लेकिन फिर भी खतरा लगातार बढ़ ही रहा है| राजनेता हमें कानून और अदालत का सम्मान करने का पाठ पढाते हैं, लेकिन, अदालत ने जिन्हें दोषी करार देकर फासी की सजा सुनाई है, वे अपराधी आज भी जीवित हैं| पूर्व प्रधानमंत्री राजीव गाँधी के हत्यारों हो, या संसद पर हमले का दोषी, इनमे से किसी के भी मामले में अब तक अदालत के निर्णय का पालन नहीं हुआ है| ये सही है कि इन्हें राष्ट्रपति के पास दया याचिका दाखिल करने का अधिकार है, जिसका उन्होंने उपयौग किया है, लेकिन यह भी तो सच है कि इस विषय पर अंतिम फैसला गृह-मंत्रालय को लेना है और राष्ट्रपति को अपनी सिफारिश भेजनी है| तो ये आज तक क्यों नहीं हुआ? अधिकांश राजनैतिक दलों की सहानुभूति नागरिको के प्रति कम और अपराधियों के प्रति अधिक दिखाई देती है| उनके पास आतंकियों की मृत्यु पर शोक व्यक्त करने का समय है, लेकिन उन्हें किसी शहीद सैनिक के परिवार की चिंता नहीं है| इससे अधिक दुखद और दुर्भाग्यपूर्ण और क्या होगा, कि संसद पर हमले के दौरान मारे गए शहीदों के परिजनों ने उस हमले के दोषी आतंकवादी को फासी न दिए जाने के विरोध में अपने सभी पदक(medal) सरकार को लौटा दिए, लेकिन इसका भी कोई असर नहीं हुआ. हमारे नेताओ के मन में बांग्लादेशी घुसपैठियों के प्रति सहानुभूति है, लेकिन कश्मीर से निकाले जाकर पिछले २० वर्षो से अपने ही देश में शरणार्थी बनकर रहने को मजबूर हजारो नागरिको की चिंता करने का समय नहीं है| नेताओ के पास दिल्ली के बाटला हाउस में हुई मुठभेड़ पर प्रश्न उठाने का समय है, लेकिन उसमे मारे गए पुलिस अधिकारी की मृत्यु के प्रति शोक व्यक्त करने का समय नहीं है. ऐसे अनेक मुद्दे हैं, जिनके सम्बन्ध में हमारे राजनैतिक दलों का आचरण संदेहास्पद रहा है| अधिक दुःख इस बात का है कि मीडिया, जिसे लोक-तंत्र का चौथा स्तम्भ कहा जाता है, भी निष्पक्ष नहीं दिखाई देता. अधिकांश समाचार चैनल देश की समस्यायों और चुनौतियों के प्रति नागरिको को जागृत करने से अधिक महत्व अन्य गतिविधियों को देते हुए ही दिखाई देते हैं| जबकि, जागृत एवं निष्पक्ष मीडिया समाज को सही दिशा देने में एक महत्वपूर्ण भूमिका निभा सकता है|

इस स्थिति को सुधारने के लिए जरुरी है कि देश के नागरिक स्वयं जागृत हों और अपने कर्तव्यों का पालन करे| हम अपने स्वार्थ से ऊपर उठकर देश को महत्व देना सीखे| चुनाव में मतदान का अधिकार हमारा सबसे बड़ा अस्त्र है और मतदान केवल हमारा अधिकार ही नहीं, बल्कि यह राष्ट्रीय कर्तव्य भी है| अतः ये महत्वपूर्ण है कि हम मतदान अवश्य करे और इससे अधिक महत्वपूर्ण यह है कि अपना वोट केवल योग्य उम्मीदवार को दे| इस बात से कोई फर्क नहीं पड़ता कि हम किस राजनैतिक दल या विचारधारा के समर्थक हैं| हम चाहे जिसे चुने, पर हमारा लक्ष्य देश की सुरक्षा और विकास ही होना चाहिए. इस कार्य में युवाओं कि विशेष भूमिका है| युवा पीढी ही देश का भविष्य है. अतः आवश्यक है कि युवा अपनी ऊर्जा को सकारात्मक गतिविधियों में लगाये| हमें याद रखना चाहिए कि यदि हम आज अपनी ऊर्जा का दुरुपयोग करते रहे और देश की समस्यायों से मुह मोड़ कर बचने कि कोशिश करते रहे, तो इसका परिणाम भी हमें ही भुगतना होगा. अतः जरुरी ये है कि युवा पीढी जागृत होकर चुनावो में अपने मताधिकार का प्रयोग करे और अधिक से अधिक लोगो को मतदान के लिए प्रेरित करे| देश की सभी चुनौतियाँ और सभी समस्याए हम सभी की है और हम सब साथ मिलकर ही इन्हें कुचल सकते हैं| यह भी धयन रखना होगा की एक सक्षम और इमानदार सरकार ही इन समस्यायों का अंत कर सकती है| अतः आवश्यक है कि हम सब मिलकर मतदान के अपने कर्त्तव्य का पालन करे, ताकि विश्व का सबसे बड़ा लोक-तंत्र, भारत, विश्व का सबसे सफल, सुरक्षित और विकसित लोक-तंत्र भी बन सके|

Read full article......
 
Creative Commons License
Youth Ki Awaaz by Anshul Tewari is licensed under a Creative Commons Attribution-Noncommercial-No Derivative Works 2.5 India License.
Based on a work at www.youthkiawaaz.com.
Permissions beyond the scope of this license may be available at www.youthkiawaaz.com.

PROMOTION PARTNERS: