जब भी हम अपनी ज़िन्दगी के बारे में बात करते हैं तो ऐसे कई विषय आते हैं जो हमें भौतिक रूप से प्रभावितकरते हैं और कई हमें भावनात्मक रूप में प्रभावित करते हैं| इन्ही में से कुछ विषय ऐसे भी होते हैं जो हमारे देश मेंनिषेध हैं (taboo)| किन्तु सवाल यह है की क्या वे सच मुच निषेध होने लायक हैं? क्या हमें इन विषयों की चर्चानहीं करनी चाहिए? मेरा मानना है के हमें चर्चा बिलकुल करनी चाहिए और क्यों न करें? ऐसा ही एक विषय हैसेक्स शिक्षा का|
सेक्स शिक्षा को अब तक हमारे देश में उसकी लायक स्तिथि नहीं मिली है| 16 नवम्बर, 2007 को उच्च न्यायालयने यह निर्णय लिया की सेक्स शिक्षा को 'शिक्षा का अधिकार' कानून के तेहेत, विद्यालयों की पढाई में शामिल नहींकिया जा सकता| "हम इसे मौलिक अधिकार का हिस्सा नहीं बना सकते" कहा न्यायाधीश रुमा पाल एवं ए.आरलक्ष्मनन ने, जनहित याचिका से जूझते हुए|
सेक्स शिक्षा से सम्बंधित कई मुद्दे हैं:
>आज कल सेक्स से सम्बंधित जानकारी प्राप्त करने के लिए युवा पत्रिकाओं, दोस्तों, वेबसाइट्स, आदि काप्रयोग करते हैं| चिंता का विषय यह है की इन ज़रियों से जो जानकारी मिलती है वह सही भी हो सकती है एवंगलत भी हो सकती है| किन्तु सेक्स शिक्षा का होना एक मात्र प्रमाणित ज्ञान एवं सही शिक्षा का ज़रिया है|
>विद्यालय में दी गयी सेक्स शिक्षा, युवाओं की सेक्स सम्बंधित जानकारी को बेहतर करने के साथ ही उनकादृष्टिकोण एवं व्यवहार भी सुधारती है|
>सेक्स शिक्षा विद्यालयों में ज़रूरी है क्योकि अक्सर माता पिता ऐसे विषयों के बारे में बात करने में संकोचकरते हैं|
>यह एक तथ्य है कि आज कल, शादी से पहले सेक्स का दर बढ़ता जा रहा है| यह साफ़-साफ़ रेखांकित करताहै कि सेक्स शिक्षा कितनी आवश्यक है| सेक्स शिक्षा युवाओं को एक परिपक्व निर्णय लेने में सहायक साबितहोगी|
>सही रूप में दी गयी सेक्स शिक्षा यौन संचारित रोगों को रोकने में सहायक साबित हो सकती है|
सेक्स शिक्षा का ना होना कई प्रकार कि कुभाव्नाओं को उत्तेजित करता है, और इसके कई गलत परिणाम भी होतेहैं, जैसे, नाबालिग बलात्कार, किशोर गर्भावस्था, उच्च जोखिम व्यवहार, यौन संचारित रोग, ज्ञान कि अनुपस्तिथिके कारण कामुकता (sexuality) का दुरूपयोग|
शिक्षक यह बहस करते हैं कि उनके द्वारा सेक्स शिक्षा दिया जाना हमारे संस्कारों के खिलाफ है| माता पिता इसविषय की चर्चा करने से संकोच करते हैं| सहकर्मी एवं दोस्त इस विषय का मज़ाक उडाते हैं|
किन्तु सवाल यह है कि कौन देगा सेक्स शिक्षा और हम कब समझेंगे इसकी ज़रुरत? माता पिता को अपने बच्चोंसे इस विषय में एक निष्पक्ष ढंग से बात करनी चाहिए, विद्यालयों में बच्चों को इस विषय के बारे में शिक्षित कियाजाना चाहिए एवं उन्हें इस शिक्षा का सही उपयोग सिखाना चाहिए| युवाओं को इस शिक्षा का दुरूपयोग ना करतेहुए इसे बाटना चाहिए|
तो आइये शर्म छोडें और एक नए वातावरण को आमंत्रित करें|
सबसे मुश्किल कार्य देश को बदलना नहीं, खुद में बदलाव लाना है|
सेक्स शिक्षा: क्यों निषेध?
Youth Ki Awaaz, Monday, March 9, 2009
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