सबसे मुश्किल कार्य देश को बदलना नहीं, खुद में बदलाव लाना है|

दहेज़: एक सामाजिक कलंक

-प्रतिमा मिश्रा

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भिवानी में एक युवती ने कपडों में आग लगाकर आत्महत्या कर ली", "नागपुर के इतवारी चौक पर एक युवती का जला हुआ शव मिला", "मुंबई मैं चलती हुई गाड़ी से कूद कर एक युवती ने जान दे दी", "पटना में एक युवती का आधाजाला हुआ शव मिला"| यह हैं कुछ दैनिक समाचारपत्रों में प्रकाशित होने वाले समाचारों के कुछ अंश हैं| यदि इन सभी घटनाओं पर विचार किया जाए तो हमें ज्ञात होगा कि समाचार चाहे भिवानी से हो, नागपुर से मुंबई से या पटना से, इन सभी मौतों का मूल कारण दहेज़ ही है| दहेज यदि इच्छा के अनुरूप मिले या अपेक्षाओं को पूरा कर सके तो लड़कियों को आत्महत्या करने पर विवश कर दिया जाता है, हर दिन दहेज के नाम पर कई युवतियां दहेज की बलि चढ़ जाती हैं|

'दहेज' शब्द अरबी भाषा के 'जेहद' शब्द से लिया गया है जिसका अर्थ 'उपहार', 'सौगात', अथवा 'भेंट' है| प्रारंभ में माता-पिता कन्यादान के समय अपने सामर्थ्य स्वरुप अपनी बेटी को खुशी से जो भी देते थे, उसे दहेज कहा जाताथा| उस दहेज पर लड़की का हक होता था| परंतु स्नेह और वात्सल्य का प्रतीक यह प्रेमोपहार समय के साथ अपनेमूल स्वरुप से पूरी तरह बदल गया है|

कई माता-पिता के दहेज दे पाने की असामर्थ्यता के कारण उनकी बेटियाँ पूरी ज़िन्दगी कुंवारी रह जाती हैं औरकईयों को अपनी ज़िन्दगी से हाथ धोना पड़ता है|

हमारे देश में शास्त्रों का अपना ही महत्व है| उन्ही में वर्णित है-
यत्र नार्यस्तु पूज्यन्ते, रमन्ते तत्र देवता |

अर्थात, जहाँ नारी को पूजा जाता है, वहां देवता निवास करते हैं| बावजूद इसके हमारे देश में नारी की यह स्तिथि है कि उसे सब ही प्रकार की परेशानियों का सामना करना पड़ता है| इसके लिए हमारा समाज, देश, देश को चलाने वाले राजनेता व् हमारा प्रभावहीन क़ानून समान रूप से जिम्मेदार हैं| यदि हमें इस सामाजिक बुराई को जड़ से समाप्त करना है तो इसे रोकने के लिए बनाये गए क़ानून को प्रभावी ढंग से लागू करना होगा, और इस अपराध में संलिप्त पाए जाने पर कठोरतम दंड की व्यवस्था तथा इसका शत प्रतिशत अनुपालन सुनिश्चित किया जाना चाहिए| यदि ऐसा होता है तो इस सामाजिक बुराई पर एक हद तक अंकुश लगाया जा सकता है|

आप सबसे यह मेरा अनुरोध है कि हम सब मिलकर इसके ख़िलाफ़ एक पहल करें और एक सुरक्षित वातावरण को आमंत्रित करें|

आवाज़ उठाओ, विचार बदलो!!!

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