इस विशाल दुनिया में कई प्रकार के देश, समुद्र, महासागर, द्वीप, जंगल, आदि हैं| प्रकृति की इन्ही सुन्दर एवंसुनहरे स्थानों पर वास है कई अलग-अलग प्रकार की जन-जातियाँ| विशेषज्ञों के अनुसार, इस दुनिया में लगभगमिलियन जन-जातियाँ हैं| उनका यह भी मानना है कि यह अनुमान प्रजातियों की वास्तविक संख्या से कईगुना कम है|
ये दुनिया विशाल है, और इसके हर एक कोने में प्रजातियों की उपस्तिथि के कारण विशेषज्ञों के लिए इनका सहीअनुमान लगाना लगभग नामुमकिन है| यह सब सुनने मैं तो बहुत आकर्षित लगता है|
किन्तु वास्तविकता एक अलग कहानी कहती है| विशेषज्ञों का यह एहसास है कि दुनिया भर कि प्रजातियाँ एकपृष्ठभूमि दर से विलुप्त हो रहीं हैं| हर साल, लाख प्रति एक प्रजाति विलुप्त हो रहीं हैं| हमारी समझ के मुताबिक, पिछले 439 वर्षों में, 5 बड़ी प्रजातियों के विलुप्त होने के कारण, दुनिया का रूप काफी हद्द तक बदल चूका है| अटकलें तो कई हैं, किन्तु "नेचर मैगजीन" के विश्लेषण के अनुसार, जैविक विविधता (biological diversity) कोअपने पुनर्निर्माण के समीप आने में ही 10 मिलियन वर्ष लग जाते हैं|
विलुप्तता के कारण पहले से कई गुना बढ़ गए हैं| इसका दर चौकाने वाला है| विलुप्तता के कई कारणों में से कुछ हैं, शोषण पर वास गिरावट, कृषि मोनो संस्कृतियाँ, मानव वहन इनवेसिव प्रजातियाँ, मानव प्रेरित जलवायुपरिवर्तन-तीव्र वृद्धि, आदि| विलुप्तता केवल राइनो, बाघ या पांडा तक ही सीमित नहीं है| वर्ल्ड कन्सर्वेशन यूनियनके मूल्यांकन के मुताबिक, हर 4 में 1 स्तनधारी, आठ में एक पक्षी, तीन में एक एम्फिबियन एवं तीन में एककोनिफेर एवं आदि ग्य्म्नोस्पेर्म्स विलुप्त होने की कगार पर हैं| जांच की गयी प्रजातियों में से 40 प्रतीषद प्रजातियोंपर खतरे का साया मंडरा रहा है, जिनमें 51% रेप्तैल्ज़ 52% कीडे एवं 73% फूल पौधे शामिल हैं|
ग्लोबल वार्मिंग और जलवायु परिवर्तन भी विलुप्तता का एक बड़ा कारण है, इसके कारण साउथ अमेरिका में, पिछले 20 सालों में 70 प्रजातियाँ विलुप्त हो चुकी हैं|
इंसानी पहलू:
>मानव मांग के कारण हुए वास नुक्सान को ही विलुप्तता का मुख्य कारण माना जाता है| इंसानों द्वारा वर्षावनकी कटौती के कारण वहां के जानवरों एवं पक्षियों का घर छिन रहा है|
>जानवर और इंसान के बीच के संघर्ष के कारण प्रजातियों को मारा जाना, उनका घर उजाड़ना एवं उनका शहरोंमें भाग आना सामान्य है |
>प्रजातियाँ जिनकी भौगोलिक सीमा कम होती है, वह अक्सर शिकार आदि के मोहरे होते हैं|
>जब निवास खंडित होता है, कुछ प्रजातियों संसाधनों के न होने के कारण मरते हैं|
>और वन्यजीव व्यापार के कारण शिकार, जानवरों के लिए एक और आम खतरा हैं|
निष्कर्ष:
जीवन इस धरती का अर्क है, यह हमारी ज़िम्मेदारी है के हम उसे संरक्षित करें| भूतकाल से सीख कर, भविष्य कोसुधारें| विलुप्तता के कारणों को समाप्त कर जन जातियों एवं फूल पौधों में संतुलन बनाये रखना चाहिए|
सबसे मुश्किल कार्य देश को बदलना नहीं, खुद में बदलाव लाना है|
वातावरण को बचाओ, खुद को बचाओ...
Youth Ki Awaaz, Wednesday, March 11, 2009
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इस विशाल दुनिया में कई प्रकार के देश, समुद्र, महासागर, द्वीप, जंगल, आदि हैं| प्रकृति की इन्ही सुन्दर एवंसुनहरे स्थानों पर वास है कई अलग-अलग प्रकार की जन-जातियाँ| विशेषज्ञों के अनुसार, इस दुनिया में लगभगमिलियन जन-जातियाँ हैं| उनका यह भी मानना है कि यह अनुमान प्रजातियों की वास्तविक संख्या से कईगुना कम है|
ये दुनिया विशाल है, और इसके हर एक कोने में प्रजातियों की उपस्तिथि के कारण विशेषज्ञों के लिए इनका सहीअनुमान लगाना लगभग नामुमकिन है| यह सब सुनने मैं तो बहुत आकर्षित लगता है|
किन्तु वास्तविकता एक अलग कहानी कहती है| विशेषज्ञों का यह एहसास है कि दुनिया भर कि प्रजातियाँ एकपृष्ठभूमि दर से विलुप्त हो रहीं हैं| हर साल, लाख प्रति एक प्रजाति विलुप्त हो रहीं हैं| हमारी समझ के मुताबिक, पिछले 439 वर्षों में, 5 बड़ी प्रजातियों के विलुप्त होने के कारण, दुनिया का रूप काफी हद्द तक बदल चूका है| अटकलें तो कई हैं, किन्तु "नेचर मैगजीन" के विश्लेषण के अनुसार, जैविक विविधता (biological diversity) कोअपने पुनर्निर्माण के समीप आने में ही 10 मिलियन वर्ष लग जाते हैं|
विलुप्तता के कारण पहले से कई गुना बढ़ गए हैं| इसका दर चौकाने वाला है| विलुप्तता के कई कारणों में से कुछ हैं, शोषण पर वास गिरावट, कृषि मोनो संस्कृतियाँ, मानव वहन इनवेसिव प्रजातियाँ, मानव प्रेरित जलवायुपरिवर्तन-तीव्र वृद्धि, आदि| विलुप्तता केवल राइनो, बाघ या पांडा तक ही सीमित नहीं है| वर्ल्ड कन्सर्वेशन यूनियनके मूल्यांकन के मुताबिक, हर 4 में 1 स्तनधारी, आठ में एक पक्षी, तीन में एक एम्फिबियन एवं तीन में एककोनिफेर एवं आदि ग्य्म्नोस्पेर्म्स विलुप्त होने की कगार पर हैं| जांच की गयी प्रजातियों में से 40 प्रतीषद प्रजातियोंपर खतरे का साया मंडरा रहा है, जिनमें 51% रेप्तैल्ज़ 52% कीडे एवं 73% फूल पौधे शामिल हैं|
ग्लोबल वार्मिंग और जलवायु परिवर्तन भी विलुप्तता का एक बड़ा कारण है, इसके कारण साउथ अमेरिका में, पिछले 20 सालों में 70 प्रजातियाँ विलुप्त हो चुकी हैं|
इंसानी पहलू:
>मानव मांग के कारण हुए वास नुक्सान को ही विलुप्तता का मुख्य कारण माना जाता है| इंसानों द्वारा वर्षावनकी कटौती के कारण वहां के जानवरों एवं पक्षियों का घर छिन रहा है|
>जानवर और इंसान के बीच के संघर्ष के कारण प्रजातियों को मारा जाना, उनका घर उजाड़ना एवं उनका शहरोंमें भाग आना सामान्य है |
>प्रजातियाँ जिनकी भौगोलिक सीमा कम होती है, वह अक्सर शिकार आदि के मोहरे होते हैं|
>जब निवास खंडित होता है, कुछ प्रजातियों संसाधनों के न होने के कारण मरते हैं|
>और वन्यजीव व्यापार के कारण शिकार, जानवरों के लिए एक और आम खतरा हैं|
निष्कर्ष:
जीवन इस धरती का अर्क है, यह हमारी ज़िम्मेदारी है के हम उसे संरक्षित करें| भूतकाल से सीख कर, भविष्य कोसुधारें| विलुप्तता के कारणों को समाप्त कर जन जातियों एवं फूल पौधों में संतुलन बनाये रखना चाहिए| jai gau mata ki jai ho